भांग की खेती (Hemp Cultivation) की जानकारी |
(Hemp Cultivation)भांग एक प्रकार का नशे देने वाला पौधा होता है | इसका वनस्पतिक नाम कैनाबिस इंडिका है | इसके पौधों की पत्तियों को पीसकर भांग तैयार करते है | भांग को अलग-अलग स्थानों पर कई नामो से जाना जाता है, जैसे बण भांग, जंगली भांग और गनरा-भांग आदि | इस नशे वाली पौधे को हिमालय के उत्तर पूर्वी जनपदों में उगाया जाता है | प्राचीन काल से ही भांग की खेती पणि समुदाय द्वारा की जाती है| भारत के उत्तरी क्षेत्रों में इसको सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है, जैसे- स्वास्थ्य, दवाइयों और हल्के नशे के लिए करते है |
इसके अलावा भारत के कुछ मैदानी स्थानों में भांग का पौधा अपने आप ही उग जाता है | भारत के उत्तरी क्षेत्रों उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और बिहार में भांग प्रचुर मात्रा में पाया जाता है | होली के त्यौहार में अक्सर ही भाग को मिठाई और ठंडाई के साथ उपयोग किए जाने की परंपरा है |
(Hemp Cultivation)भांग की खेती काफी प्रॉफिट वाली खेती होती है, किन्तु इसकी खेती आप आम खेती की तरह नहीं किया जाता है | भांग के खेती के लिए आपको सरकार से लाइसेंस लेना होता है इसके अलावा साथ में और भी कई आवश्यक चीजों को ध्यान में रखना होता है | आज हम आपलोगों को भांग की खेती के बारे में बताने जा रहे है, कैसे की जाती है, जलवायु, भूमि, मौसम, सर्कार से इजाजत आदि सब में बताएँगे तथा भांग गांजा और चरस में अंतर भी बताएँगे।
भांग की खेती (Hemp Cultivation)
(Hemp Cultivation)भांग का पौधा एक वर्ष में 13 से 15 फ़ीट तक लंबा बढ़ जाता है | इसी पौधे में लगी लंबी-लंबी डंठलों की ऊपरी सतह से भांग का रेशा प्राप्त होता है | यह बारीक़ रेशे क्यूटिकल नामक त्वचा से ढ़के होते है | नर पौधे से भांग के अधिक रेशे प्राप्त होते है, तथा मादा पौधा कम रेशेदार होता है | लेकिन बीज और नशीले पदार्थ का उत्पादन नर और मादा पौधे से ही होता है | मादा पौधे से और भी कई तरह के नशीली पदार्थ बनाया जाता है। भांग के पौधे के बीज का इस्तेमाल तेल और मसाले के लिए करते है | नर पौधे से निकला रेशा भंगेला कहलाता है |
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1600 ईस्वीं में ईस्ट इण्डिया कंपनी ने भांग के व्यवसाय को कुमांऊ में शासन स्थापित होने से पहले ही अपने हाथो में ले लिया था, तथा इसके अलावा काशीपुर के नजदीक डिपो को भी स्थापित किया | दसोली, गंगोली और दानपुर की कुछ जातियाँ भांग के रेशो से कंबल और कुथले का भी निर्माण करती है |
(Hemp Cultivation)भारत के हिमाचल प्रदेश के गढ़वाल के चांदपुर को भांग के पौधे का घर भी कहते है | पर्वतीय क्षेत्रों में भांग प्रचुर मात्रा में उगाया जाता है, तथा ख़ाली पड़ी भूमि में भी इसका पौधा स्वाभाविक रूप से अपने आप उग आता है | इसके बीजो को खाने के लिए इस्तेमाल में नहीं लाया जाता लेकिन कुछ नशीली पदार्थों को बनाने में किया जाता है |
पिथौरागढ़, हल्द्वानी, टनकपुर, रामनगर, रानीखेत, बागेश्वर, नैनीताल, अल्मोडा़, गंगोलीहाट में वर्षा ऋतु के पश्चात् भांग के पौधे खुद ही उग आते है | नम जगह भांग के लिए काफी अनुकूल होती है और इसी कारण भांग स्वतः ही उग आते है।
भांग में पाए जाने वाले रसायनिक तत्व (Cannabis Chemical Element)
(Hemp Cultivation)सामान्य तौर पर लोग भांग और औद्योगिक भांग में अंतर स्पष्ट नहीं कर पाते है | किन्तु आपको बता दे कि दोनों ही तरह की भांग में काफी फर्क होता है | लेकिन दोनों होते एक ही फैमिली के है, बस प्रजातियां अलग-अलग है | नशे के लिए जिस भांग का इस्तेमाल करते है, उसमे टेट्राहाइड्रोकेनोबिनॉल (टीएचसी) की मात्रा 32 फीसदी होती है | जबकि औधोगिक भांग में यह मात्रा सिर्फ 0.4 फीसदी ही होती है |
टीएचसी एक रसायन होता है, जो नशे के लिए जिम्मेदार होता है | कॉस्मेटिक, फाइबर, एमफीएफ प्लाइबोर्ड और दवाइयों के निर्माण में इस किस्म के भांग की काफी डिमांड रहती है | भांग के रेशे से गाजी, बोरा, कोथला और पुलों के लिए रस्सी का निर्माण भी किया जाता है |
(Hemp Cultivation)भांग का उपयोग (Cannabis Uses)
(Hemp Cultivation)भांग का सबसे बड़ा उपयोग कुपोषण को ख़त्म करने में होता है | इसमें हाई प्रोटीन के साथ ओमेगा -3, ओमेगा 6 पाया जाता है | आपको जानकर आश्चर्य होगा की इसकी खेती काफी कम लागत तथा कम मेहनत महि की जा सकती है | भांग जंगली प्रजाति होने के चलते ये किसी भी तरह की भूमि में उग आता है | इसकी खेती में बेहद कम व सिमित मात्रा में पानी व् खाद का इस्तेमाल किया जाता है | भांग से बनाए गए कपड़ो का महत्त्व पहाड़ की लोक कला में काफी अधिक रहता है |
किन्तु अब जब बोरा और चटाई की बुवाई के लिए मशीनों का प्रयोग किया जाने लगा है, और भांग की खेती पर लगे प्रतिबंध के कारण भी इस कला के समाप्त होने का डर बना हुआ है | प्राचीन काल में जब चप्पल व जूतों का प्रचलन नहीं था, तब तिब्बत के साथ भेड़–बकरी का व्यापार करने वाले लोग उसकी खाल से बने जूतों के बाहरी हिस्से में भांग की रस्सी से बनी छपेल का इस्तेमाल करते थे |
(Hemp Cultivation)इस तरह के जूते में खाशियत- बर्फ में फिसलते नहीं थे, और न ही इन जूतों में शरद लगती थी | इसके अलावा प्राचीन समय में भांग के रेशे से बने थैले का इस्तेमाल भेड़ व बकरी की पीठ पर माल ढोने के लिए करते थे | प्राचीन समय से ही लोग दर्द निवारक के लिए भांग का इस्तेमाल करते आए है | इसके पौधे से निकली छाल रस्सियां बनाने तथा डंठल से मशाल रेडी की जाती थी | विश्व के कई देशो में दवा के रूप में भी भांग का उपयोग किया जाता है |
भांग के पौधे के विभिन्न भाग (Cannabis Plant Different Parts)
(Hemp Cultivation)भांग का पौधा 5 से 8 फ़ीट तक ऊँचा होता है | भांग के पौधों पर पत्ते एकान्तर क्रम में लगे होते है | भांग के ऊपरी पत्ती 2-3 खंड तथा निचली पत्ती 4-8 खंड वाली होती है | निचली पत्ती में पत्रवृन्त लम्बे होते है | इसके नर पत्तो को सुखाकर भांग तथा मादा पौधे की रालीय पुष्प से निकली मंजरियों को सुखाकर गांजा तैयार करते है | भांग की शाखा और पत्तों पर जमे राल को चरस कहते है |
भांग की खेती के लिए अनुमति कहा से ले (Cannabis Cultivation Permission)
(Hemp Cultivation)भांग की खेती करने के लिए आपको नार्कोटिक्स ड्रग्स ऐंड साइकोट्रॉपिक सब्सटेंसेज ऐक्ट 1985 के तहत केंद्र सरकार से बागवानी और औद्योगिक उद्देश्य हेतु अनुमति चाहिए होती है | इसकी खेती में सबसे बड़ी बाधा साइकोएक्टिव तत्व की उचित जांच के लिए तकनीक आधारित मानक का न होना है | एनडीपीएस ऐक्ट के अनुसार केंद्र सरकार टीएचसी की कम मात्रा वाली भांग के लिए अनुसंधान और परीक्षण को प्रोत्साहन देगी |
भांग, गांजा व चरस में क्या अंतर है (Bhang, Ganja and Charas Difference)
(Hemp Cultivation)भारत, पाकिस्तान, नेपाल और लेबनान, बंगलादेश जैसे देशो में पत्तियों को रगड़कर ही चरस या गांजा तैयार करते है | इसमें फूलो को जितनी धीमी स्पीड से रगड़ते है, चरस की गुणवत्ता उतनी की खास होती है | इसकी पीसी हुई पत्तियों को जब किसी चीज़ में मिक्स करते है तो वह भांग कहलाती है | ठंडाई में भी भांग की पत्तियों को मिलाकर खूब पिया जाता है | इसके अलावा हलवा, जलेबी और पकोड़े में भांग मिलाई जाती है |
कई तरह की दवाइयों को बनाने में भी भांग के पौधे को प्रयोग में लाते है | हालाँकि कई देशो ने भांग पर प्रतिबंध लगाया हुआ है, और कई देश भांग से प्रतिबंध हटा चुके है |
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